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कोई लौटा दे मुझे मेरा बीता बचपन

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जब हम बच्चे थे
अक्ल के कच्चे थे
हमारे मन सच्चे थे
ऊँच-नीच का ज्ञान नहीं
द्वेष और भेदभाव से परे।।

अपनी इक छोटी सी दुनिया
जो सजती गुङिया-गुड्डों,
रंग-बिरंगे खिलौने से
जिनमें बसती थी जान हमारी।।

सज-संवर कर
रंग-बिरंगे कपङों में
माँ की ऊँगली पकङ कर
जाते हम स्कुल
ज्योंहि माँ ऊँगली छुङाती
उमङ पङते गंगा-जमुना की धार।।

सभी बच्चे प्यारे-न्यारे
हम सब इक बगिया के फूल
खेलते-कूदते, सुर-संगीत से
हम सब सीखे
गिनती,अक्षरमाला, वर्णमाला।।

घर पर हमारी
दादी दुलारी
करती मेरी बङी तरफदारी
सुग्गा- मैना कौर बना कर
मुझे फुसला कर
खिला देती पौष्टिक आहार।।

प्यार की थपकी लगाकर
लोरी गाकर
बिदा कर देती मुझे
नींद रानी के द्ववार
आनंदित हो मैं
रम जाती
लुफ्त उठाती
खो जाती
सपनों के शहर।।

बचपन था हमारा अनमोल
इंद्रधनुष के रंगों का घोल
धरोहर थे
अमूल्य रिश्तों की सच्चाई
बिन मिलावट के
प्यार की गहराई।।

कोई लौटा दे मुझे
मेरा बीता बचपन
फिर से सीखा दे
सादगी और भोलापन।।

© इला वर्मा 24-01-2016

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By Ila Varma

Blogger By Profession, Brand Ambassador, Freelancer Content Writer, Creative Writer, Ghost Writer, Influencer, Poet.

Life without Music, just can't think of. Admirer of Nature.
In spite of odds in life, I Keep Smiling and Keep the Spirits burning.

My favourite Adage, "Do Good & The Good Comes Back to You!"

6 replies on “कोई लौटा दे मुझे मेरा बीता बचपन”

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